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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 25)








अचानक से चट्टानों के शोर थम गया, उन विशाल चट्टानों के पहाड़ के नीचे डेड डीमन्स के साथ वीर भी दफन हो चुका था। वातावरण डार्क लीडर की अट्ठहासों से कांप रहा था, अचानक चट्टानों के शोर के थमने का साथ ही डार्क लीडर के शैतानी हँसी पर भी अवरोध लग गया। चट्टानों के पहाड़ के नीचे से एक पतले घास सा कुछ निकला, तेज गति से घूमते हुए उस घास ने चट्टानों को बीच से चीर दिया, एक पतले से स्याह घास के सहारे वीर बाहर निकल रहा था, उसका जिस्म बुरी तरह चोटिल था परन्तु चेहरे पर एक विक्षिप्त क्रूर सी मुस्कान थी, उसका स्याह चेहरा चमक रहा था।

"बस यही कर सकते हो?" वीर, तेजी से डार्क लीडर की ओर बढ़ा और उसके जड़बे को पकड़कर बोला, डार्क लीडर के सिर की ज्वाला बुझने लगी।

"अक्क… तुम ये कैसे कर सकते हो?" डार्क लीडर घबराया हुआ बोला। डेड डीमन्स अपने कटे-छटे अंगों को जोड़कर पुनः खड़े हो गए और तेजी से वीर की दिशा में बढ़ने लगी। यह देखकर वीर आश्चर्यचकित हुआ।

"तुम ये कैसे कर सकते हो?" वीर, डार्क लीडर को जमीन पर पटकते हुए बोला।

"मैं..मैं कुछ भी कर सकता हूँ!" क्रूर मुस्कान लिए डार्क लीडर बोला। उसने वीर को उठाकर डेड डीमन्स के बीचोंबीच फेंक दिया। डेड डीमन्स जो स्वयं ही साक्षात शैतान के अवतार थे, शैतानी स्वर उत्पन्न करते हुए वीर की ओर बढ़े, वीर के स्याह चेहरे पर चिंता के भाव गहरा गए। डेड डीमन्स उससे एक क्षण की ही दूरी पर थे, इससे पहले कोई वीर को हाथ लगाता वहां की धरती फटने लगी अचानक ही वीर ऊपर उठता गया और उसके आस पास स्याह बेलों का जाल बनने लगा। वीर की आँखे खुंखारता लिए उबाल मार रही थीं।

"इन तुच्छ जीवो के सहारे वीर से जीतने का स्वप्न मत देख डार्क लीडर!" वीर बेलों से उतरकर हवा में ठहरते हुए बोला। उसके साथ ही जमीन से निकली हजारो जड़ें, डेड डीमन्स को कसकर जकड़े हुए थी और बेलें किसी प्यासी दोधारी तलवार की भांति डेड डीमन्स को टुकड़ो में बिखेरते जा रही थी।

"तुम्हारे लिए डार्क लीडर अकेले काफी है वीर!" डार्क लीडर अपने बाएं हाथ को अपने आँखों के सामने लाते हुए बोला। अचानक हजारों जलते पत्थर हवा से उत्पन्न होकर वीर की ओर बढ़ चले। डार्क लीडर के सिर की लपट तेज होने लगी, आँखों में स्याहियां चमक रही थी। उन गिरते हुए जल्ट पत्थरों की ओर स्याह जड़ें बढ़ने लगीं, वीर तेजी से उड़ते हुए डार्क लीडर को पकड़कर उन गिरते पत्थरों को चीरते हुए पहाड़ से जा  टकराया, उस पहाड़ में दरार पड़ गयी और वह धूल में बिखरने लगा। अचानक वे सभी गिरते पत्थर गायब हो गए, डार्क लीडर यह देखकर अत्यधिक क्रोधित हुआ, वह वीर पर शक्तिशाली स्याह उर्जावार करता है जिससे वीर वहां से काफी दूर जा गिरता है।

डार्क लीडर की कुछ महान शक्तियां निष्क्रिय होती जा रही थीं क्योंकि वह प्रयोग करना नही सीख पाया था, वही वीर एक शक्तिशाली और बुध्दि का प्रयोग करने वाला बेहद खतरनाक स्याह योद्धा था। वीर उठते ही आह्वान कर यहां के हर एक वृक्ष, बेल, लता, घास, एवं जड़ो को जगाता है, डार्क लीडर यह देखते ही अपने साम्राज्य की ओर वापस भागने लगता है।

"अब तू कहीं नही जा सकता है डार्क लीडर! अब डरा तू डर को।" वीर व्यंग्य करते हुए कहा। वह डार्क लीडर को लेकर तेजी से उड़ता है, अचानक दोनों किसी चीज से टकराकर वहीं गिर जाते हैं। वह जो भी चीज थी वह टस से मस तक न हुई थी। दोनों ने हैरानी भरी नजरों से उसे देखा, यह ओमेगा स्तम्भ था। अंधेरे का महान प्रतीक स्तम्भ! दोनों लड़ते-लड़ते यहां तक आ चुके थे।

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एक दुर्गम स्थान!

देखने में किसी विशाल किले जैसा प्रतीत हो रहा था, परन्तु यह दुर्ग पत्थरों एवं पहाड़ो द्वारा निर्मित एवं पूर्णतः प्राकृतिक ही प्रतीत होता था। आसपास की धरती बिल्कुल बंजर था, ऐसा लग रहा था मानो सदियों से यहां कोई नही आया। दूर-दूर तक एक भी पेड़-पौधा या जीव नजर नही आ रहा था, फिर भी वहां इर्दगिर्द कंकालों के टुकड़े बिखरे पड़े थे जिनका रंग काला पड़ गया था। शायद यहां कभी जो गलती से आया वह कभी लौटकर नही गया यही कारण था कि यहाँ कुछ भी दिखाई नही दे रहा था।

पहाड़ी पूरी तरह से काली पड़ चुकी थी, अंधेरी रात में चमक रहा चंद्र भी इस अंधेरे को कम करने के बजाए इसकी चमक को दोगुना कर रहा था, वातावरण में भय की लहर दौड़ रही थी, पहाड़ के कुछ शिलाखंड इस समय ऐसे दिख रहे थे जैसे कोई भयानक दानव हो, अलग अलग शिला अलग अलग वेशभूषा के दानवों के चित्र को समेटे हुए था, दूर से देखने पर देखने वाले कि रूह तक कांप जाती। यहां कुछ भी उड़ता हुआ नजर नही आ रहा था, हवा भी जैसे इस स्थान से बस चुपचाप गुजर जाने में ही अपनी भलाई समझ रही थी। चारों तरफ गहरा सन्नाटा था, यह सन्नाटा किसी के भी रूह को काट खाने दौड़ पड़ता।

शायद यह स्थान कभी इतना दुर्गम न होता अथवा यह दिन में बेशुमार खूबसूरती बिखेरता हुआ कोई प्राकृतिक पहाड़ी दुर्ग लगता परन्तु घनी रात में उसकी स्याह चमक और आसपास बिखरे कंकाल इस स्थान को रहस्यमयी बना रहे थे। रात में शायद यहां झींगुर या जुगनू भी आने से डरते होंगे, इसलिए इस वक़्त यह स्थान अत्यधिक दुर्गम स्थानों में से एक था यहां आना सम्भव ही नही था। चारों तरफ खड़े दानव आकृति सी चट्टाने ऐसे खड़ी थी मानो अभी उठकर अपने सामने वाले को लील जाएंगी। किसी कमजोर दिल वाले के लिए यह दृश्य हृदयाघात के झटके दिला देता।

अचानक वहां का सदियों से पसरा सन्नाटा टूटा। वातावरण में ठक-ठक की ध्वनि उभरी, जैसे कोई चलकर उस ओर आ रहा हो। अंधेरे में उसका स्याह जिस्म चमक रहा था, मुख पर कठोर भाव और सुलगती आँखे आत्मग्लानि से भरी हुई थी। सीने पर ओमेगा चिन्ह चमक रहा था, जिसकी चमक को चाँद कई गुना बढ़ा रहा था। यह विस्तार था जो स्वयं अंधेरे का रहस्य बन चुका था, पर आज वह अंधेरे का विस्तार करने नही बल्कि उसके इस विस्तार को रोकने आया था। विस्तार शक्ति ने ब्रह्मेश को बुरी तरह से झिझोड़कर रख दिया था, जिस संसार को उसने सदैव उत्तम बनाना चाहा आज वह उसके ही कारण अपने अंत के कगार पर है। यदि आज विस्तार सफल नही हुआ तो सबकुछ खत्म हो जाएगा, उसका हृदय आत्मग्लानि से भर गया था, वह किसी के कंधे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोना चाहता था परन्तु यहां ऐसा कोई नही था। एक मन था जो उसपर जो हो रहा है वह सब होने देने को कह रहा था परन्तु विस्तार, वह कौन है! क्या है! सबकुछ जानने के बाद यह सब कभी नही होने दे सकता था। सभी अपने-अपने कर्तव्यों से बंधे हुए हैं। यह समय था बस यह सिद्ध करने का कि वह चाहे कुछ भी हो जाये उसकी आत्मा सदैव एक पवित्र शक्ति का अंश बनी रहेगी।

वातावरण की भयावहता विस्तार को नही डरा पा रही थी, कुछ भी उसके मन में चल रहे उस द्वंद, उस प्रायश्चित से अधिक भयावह नही था। उसके अपने असफल होने पर होने वाली घटनाओं के बारें में ही सोचकर हृदय फटा जा रहा था। स्याह पड़े कंकालों के टुकड़े उसके पैरों के तले कुचलकर चट्ट-चटाक के स्वर के साथ टूटते जा रहे थे परन्तु उसका ध्यान इन सबपर बिल्कुल भी नही थी, उसके आँखों से स्याह आँसू झर रहे थे, जो चाँद की रोशनी में मोती के समान चमक रहे थे।

"तुम यहाँ क्यों आये हो?" वातावरण में एक क्रोध भरा स्वर उभरा।

"बन्द करो यह सब! मैं ये सब नही करना चाहता था।" विस्तार लगभग रोते हुए बोला।

"मैंने कुछ नही किया है विस्तार!" स्वर में क्रोध बढ़ता गया। "ये सब तुमने किया है।"

"हाँ! मैंने किया है!" विस्तार रोते हुए बोला। "पर वह मैं होकर भी मैं नही था।" उसके आँसुओ की एक बूंद गिरने से उस रेतीले स्थान पर एक पौधा अंकुरित होने लगा।

"तुम ये स्वीकार कैसे कर सकते हो।" वह हैरान था, उसका क्रोध पानी हो गया परंतु वह अब अचंभे से भर गया था।

"मैं जानता हूँ मैं स्याह शक्तियों का शुद्ध रूप हूँ और इस रहस्यमयी दुनिया का कुंजी भी! पर अब मुझे सबकुछ बदलना है" विस्तार चीखते हुए बोला।

"तुम्हें कैसे पता यह यहां है?" अचानक वहां का परिवेश बदलने लगा। सबकुछ एकदम से बदल गया, विस्तार अब बिल्कुल नए स्थान पर खड़ा था, जहां चारों ओर खूबसूरत पेड़-पौधे और चिड़ियों की कलरव का शोर था। यह स्थान मन मोहित कर लेने वाला था परन्तु विस्तार ने इन सब पर ध्यान नही दिया उसे किसी और की ही तलाश थी।

थोड़ी ही दूर स्याह पत्थरों से बना वह किला नजर आया, जिसपर बहुत ही खतरनाक नक्काशी की गई थी, कुछ कलाकृतियां ऐसी थी जिन्हें देखकर रूह तक जब्ज हो जाये, दिल की धड़कनें रुक जाएं, मुख्य द्वार के ऊपर बना ओमेगा चिन्ह धूमिल हो चुका था, उसे देखकर लग रहा था जैसे किसी ने उसपर स्याहियां पोत दी हैं। विस्तार उन सब पर ध्यान नही दिया, वह द्वार पर पहुँच कर उसे धकेला, उसकी पूरी ताकत लगाने के बाद भी वह द्वार नही खुला।

"ये सब मैंने किया है! इसलिए मैं इसकी सजा भुगतने के लिए तैयार हूँ, परन्तु अब किसी निर्दोष की जान नही जानी चाहिए!" विस्तार अपनी आँखें बंद कर दोनों हाथों से द्वार को धकेलते हुए मन में बोला।

"तुम ऐसा क्यों कह रहे हो कि यह सब तुमने किया है?" वातावरण में एक भयावह स्वर उभरा, विस्तार बिना द्वार खुले ही अंदर चला गया। वहां अनगिनत विक्षिप्त आत्माएं भटक रही थी, सभी विस्तार को काट खाने वाली नजरो से घूर रहे थे। कुछ दूर हड्डियों के कई ढाँचे नाच रहे थे, हड्डियों के टकराने से विचित्र स्वर उत्पन्न हो रहा था जो हड्डियों में सिरहन पैदा कर दे रहा था।

सभी मृत विक्षिप्त आत्माएं विस्तार की ओर बढ़ी, नाचते हुए हड्डियों के ढाँचे रुककर विस्तार की ओर बढ़े और उससे चिपट गए। विस्तार किसी भी प्रकार का विरोध नही कर पा रहा था वह आत्मग्लानि में बहता जा रहा था।

"तुम्हारी वजह से हम यहां कैद होकर रह गए हैं विस्तार!" उन आत्माओं और हड्डियों की ओर से स्वर गूँजने लगा। " तुमने मारा है हमें! तुम हत्यारे हो, तुम….. तुमने मार दिया है हम सबको।" कक्ष में चारों ओर यही स्वर गूँजने लगा। यह सुनते ही विस्तार और कमजोर पड़ने लगा, वह अपने दोनों हाथों से कान बन्द कर एक दीवार से जाकर चिपक गया।

अचानक दीवार सरक गयी वह तेजी से गिरता हुआ हड्डियों के ढांचे पर जा गिरा। उन विक्षिप्त आत्माओं ने विस्तार को बांध कर उसके प्राणऊर्जा को सोखना आरम्भ कर दिया। विस्तार अपने निहित कार्य को पूर्ण करने से पहले ही अपने अंत की ओर अग्रसर हो चुका था। उसके शरीर ने उसका साथ देना छोड़ दिया, विस्तार की आत्मा बुरी तरह से तड़पने लगी, विस्तार अपने लक्ष्य में असफल हो रहा था।

"यह इतना आसान भी नही है पुत्र!" घने अंधेरे में अट्ठहास के साथ एक स्वर गूँजा। विस्तार बस उस आवाज को सुन सका उसके पास उसका जवाब देने की शक्ति शेष नही थी। अगले ही क्षण वह निढाल पड़ चुका था, उसके शरीर पर बना ओमेगा चिन्ह मिटने लगा।

"तुम ऐसे ही नही मर सकते विस्तार! तुम्हें इस सारी दुनिया को अपने कारण मिले अभिशाप से मुक्त कराना ही होगा।" विस्तार के मन में एक स्वर उभरा,  वह चिहुंका और अचानक उसके सीने पर ओमेगा चिन्ह पुनः बनने लगा और तेजी से चमकते हुए उस स्थान के अंधेरे को मिटाने लगा।

"अंधेरे के भी कुछ नियम हैं इसलिए सभी शक्ति स्त्रोतों के लिए नियंत्रक, आबंटक और संयोजक पद व्यवस्थित है।" विस्तार अपने जबड़े को भींच कर कठोर स्वर में बोलने लगा। ओमेगा चिन्ह के बढ़ते चमक के कारण विक्षिप्त आत्माओं और कंकालो ने उससे दूरी बना ली थी। "ये विस्तार, किसी का भी सम्भव नही जब तक वह कल्याणकारी न हो।"

"तुम तो उजाले की भाषा बोलने लगे पुत्र!" अंधेरे कोने से उभरे उस स्वर में तीखे मुस्कान के साथ कटाक्ष की भी बू आ रही थी।

"मेरी आत्मा उसी से बनी हुई है! और अंधेरा भी कभी स्वयं का नियम नही तोड़ता यह बस तुम जैसे अंधेरे पुत्र की बनाई हुई कहानी है!" विस्तार भड़कते हुए बोला।

"तुम अपनी नियति से भाग नही सकते ब्रह्मेश! तुम जब भी आओगे इस कार्य के लिए ही चुने जाओगे।" वह भी भड़कता हुआ बोला।

"तो मैं आऊंगा ही नही!" विस्तार एक ओर बढ़ता चला गया।

"अपनी नियति से कौन बच पाया है ब्रह्मेश!" स्वर में व्यंग्य का पुट था। विस्तार ने कोई जवाब नही दिया वह एक ओर बढ़ता रहा। उसका शरीर और स्याह पड़ता जा रहा था। अचानक उसे महसूस हुआ जैसे उसके ऊपर सैकड़ो ग्रह का भार लाद दिया गया हो। वह हिल तक नही पा रहा था, उसके कदम उसका साथ नही दे रहे थे। बदन का कतरा कटरा पीसकर टूट रहा था। विस्तार बहुत देर तक इस असहनीय दर्द को सहता रहा, आखिर उसे वह मिल ही गया जिसकी उसे तलाश थी, सामने एक विचित्र छेद था जिसमे से खून बह रहा था। विस्तार बिना कुछ सोचे समझे उसमें अपना हाथ डाल दिया, अगले ही क्षण वहां तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ और उसके बाद वहां कुछ भी शेष न था, न ही वह स्थान और न ही विस्तार। दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था, सबकुछ सामान्य होने लगा जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।

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(वर्तमान)

"और तब से मैं तुमपर निगरानी रख रहा हूँ, तुम्हें विशुद्ध स्याह ऊर्जा बनने से बचाने की कोशिश करता हूँ पर इस बार मैं असफल रहा।" वह व्यक्ति बोला। गेरुआ वस्त्र धारण किये लम्बी दाढ़ी मुछ और लम्बे केशधारी हाथो में रुद्र की माला और दूजे हाथ में त्रिशूल लिए बैठे हुए वह किसी दिव्य प्रकाशमूर्ति समान प्रतीत होते थे।

"फिर क्या हुआ था और आप कौन हैं?" विस्तार जिज्ञासु स्वर में पूछा।

"सारी दुनिया पहले जैसे हो गयी, डार्क फेयरीज़ और मैत्रा ने संसार के स्मृति से विस्तार और उस घटना को भुला दिया था। परंतु न जाने कैसे वीर और डार्क लीडर उजाले की दुनिया में आ गए थे जो सदियों से तुम्हें ढूंढकर अपने स्वामियों को स्वतंत्र कराना चाहते हैं।" वृद्ध ऋषि उठते हुए बोले।

"आप कौन हैं?" विस्तार फिर पूछा।

"तुम जानते हो! जाओ अपना कार्य करो, इस बार आशंका है कहीं नराक्ष और ग्रेमन मिलकर तुम्हारे खिलाफ न लड़ने आये।" कहते हुए वे ऋषि वहां से अंतर्ध्यान हो गए।

"रुकिए! आप कहीं आचार्य सूरज शुक्ल तो नही…!" विस्तार आश्चर्य भरे स्वर में पूछा। "आप वही हैं।" फिर वह खुद से बोला।


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3 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:17 PM

Wow..Surprisingly written

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Farhat

25-Nov-2021 06:36 PM

Good

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Kumawat Meenakshi Meera

27-Jul-2021 06:13 PM

Good

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